sathi
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बुढ़े बरगद के नीचे
उस रात जब मैं तुम्हारी
आगोश मेंa था
सर्दी की वह रात बहुत गर्म थी।
तुम्हारे इन्कार में छुपे इकरार को
मैंने समझा
तुम्हारे आलिंगन का वह
नैसर्गिक आनन्द
कोहरे की उस रात में
पसीने की शक्ल में छलक उठा था।
उस रात की सुबह
हम दोनों
आसमान में
डूब-उतर रहे थे
जैसे
हंसा ने चुग लिया हो
मोती………….
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