sathi
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तुफानों की घिरी जिंदगी
डूबती-उतरती रहती है..
कभी सतह पर
तलाशती है कोई
तिनका..
कभी
तलाशती है उसे
जो खोया ही नहीं…
कभी भरकर
मुठ्ठी में रेत
मचल जाती है…
कभी तलाशती है
स्याह
रातों की
सलवटें..
तभी दूर कहीं एक
लैंपपोस्ट
कहती हो जैसे
तुम भी क्यों ने बन जाते हो
मेरी तरह
.
थरथराती हुई सी सही
मेरी रौशनी किसी को
राह तो दिखाती है..
किसी को किनारा तो
बताती है…
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