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इंदिरा इज इंडिया के बाद हर हर मोदी का अधिनायकवादी नारा देश के लिए अशुभ।

sathi
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आंदोलन के उन दिनों में जब अन्ना हजारे, अरविन्द और बाबा रामदेव अनशन कर रहे थे तो अन्ना की गिरफ्तारी, तुरंत जेल, तुरंत बाहर, रामदेव की अगुआई में चार चार मंत्री और फिर लाठी चार्ज यह कांग्रेस के नेतृत्व क्षमता की कमी दर्शाती थी। इसी प्रकार कलमांडी, कलीमोंझी और राजा सरीखों पर सरकार की शुन्यता और सुप्रिम कोर्ट के आदेश पर सबको जेल यह भी सरकार के नेतृत्व क्षमता की रूग्नता का परिचायक ही थी।
मंहगाई, भ्रष्टाचार, तेल और रसोई गौस की कीमत पर सरकार का अड़ियल रूख और मंत्रियों का अनर्गल वयानबाजी उसके जनता से कट जाने का रास्ता प्रशस्त कर दिया।
इस तरह के कई उदाहरण है। परिणामतः कल तक दंगों का आरोप झेल रहे नरेन्द्र मोदी जहां खलनायक की तरह जनता के मानसपटल पर चित्रित थे वही धीरे धीरे वे नायक बनने लगे और आज एक महानायक की तरह राजनीति के तारामंडल पर चमक रहे है।
इस सबके बीच देश के लिए कुछ धातक संकेत भी साथ साथ आ गए। इनमें से एक भाजपा का मोदीकरण हो जाना सबसे धातक है। गुजरात की राजनीति मोदी के अवतरण के बाद से हरेन पाण्डेया प्रकरण और आज आडवाणी, जोशी, टंडन, सुषमा, जेटली, नकवी तक राजनीतिक पंडितों के लिए नमो की राजनीति समझने के लिए बड़े संकेत है!
भाजपा को कार्यकत्ताओं की पार्टी मानी जाती थी पर आज राजनाथ सिंह पहले ट्विट करते है कि अबकी बार भाजपा की सरकार और फिर मिटा कर कहते है मोदी की सरकार? छद्म धर्मनिरपेक्षता और मोदी के धूर विरोधी रामविलास पासवान, रामकृपाल यादव को पार्टी ने गले से लगा लिया और बकौल नकबी आतंकी कनेक्शन के आरोपी साबीर अली को पार्टी में शामिल कर बाहर किया गया। यह सब देश की राजनीति संभालने की आतुरता के आलाबे क्या है?
वहीं देश की बड़ी पार्टी अपने पुत्र मोह में अपना सर्वनाश कर लिया। राहुल के पास राजनीतिक समझ नहीं है और उसे देश पर थोपने की जिद्द ने आज कांग्रेस को बैकफुट पर ला कर खड़ा कर दिया। परिणाम से पहले वह हारी हुई सेना सरीखी लग रही है।
कांग्रेस के इसी नेतृत्व क्षमता के आभाव के परिणामतः आज आम आदमी पार्टी का अभ्युदय हुआ। राजनीति के कई मानदंडों को तोड़ते हुए केजरीबाल ने दिल्ली की कुर्सी संभाल कर 49 दिन सरकार बना कर इस्तीफा दे दिया। भाजपा के 30 विधायक होते हुए आप के 28 विधायकों के रहने पर सरकार नहीं बनाने की बयान पर केजरीबाल को धाध नेताओं से मिलकर मीडिया ने ऐसे घेरा कि उन्होंने कांग्रेस के बिन मांगे मिले समर्थन से सरकार बना ली। आज पानी, बिजली, भ्रष्टाचार पर किए गए उनके कार्यों को भूल उन्हें फिर भगोड़ा बना दिया गया?
इस सबके बीच विकास के रथी बिहार के सीएम नितीश कुमार भी छद्म धर्मनिरपेक्षता के रथ पे सवार हो गए। उनके अपने साथियों ने ही उन्हें साजिश के तहत फंसा दिया। परिणामतः आज वे आठ-दस साल पुर्व लालू यादव की राजनीतिक लीक पकड़ते हुए जातिवादी जाल बिछा दिया है। जिस तरह नरसंहार से त्रस्त स्वर्णों का गुस्सा लालू प्रसाद के उपर था उसी प्रकार आज नितीश कुमार पर है और ठीक इसके विपरार्थक मुस्लिम, पिछड़ा और दलितों का साथ उनके मिलने की संभावना है पर लालू प्रसाद से इनका मोह आज तक भंग नहीं हुआ है और नरेन्द्र मोदी ने भी यही कार्ड खेलकर राजनीति को दिलचस्प बना दिया है और लालू यादव ने स्वर्ण गरीबों को आरक्षण की बात कह राजनीति में नये संकेत दिए है।
परिणामतः बिहार के सुपरमैन नितीश कुमार की सभा में आज चप्पल और पत्थर फेंके जा रहे। भीड़ नदारद हो रही है। इस सब में सबसे दुखद यह कि दबे-कुचलों की राजनीति करने वाला वाम संगठन आज पैरों के नीचे से खिसकी जमीन को तलाश रही है। कांग्रेस का समर्थन से लेकर नंदीग्राम तक उसने कई गलतियां की जिससे आज उसकी उपस्थिति भी कहीं दिखाई नहीं देती।
आगे हर हर मोदी के अधिनायकवादी नारा देश के भविष्य की राजनीति के बुरे संकेत हैं। भय, भूख और भ्रष्टाचार से परे राम और रहीम में देश को बांट दिया गया है। युवाओं का एक बड़ा वर्ग मदांध हो अपने रोजगार की चिंता छोड़, हाथों में त्रिशुल थामे घूम रहा है। मोदी यदि प्रधानमंत्री बन गए तो भारत इंदिरा इज इंडिया से आपातकाल तक के सफर को फिर से दोहरा सकता है या फिर एक नया भारत भी जन्म ले सकता है।

इस सब में सुखद यह कि केजरीबाल ने तीसरी ताकत के रूप में दो ध्रुविय राजनीति के जल में रहकर मीडिया, नेता और कॉरपोरेट रूपी मगरमच्छ से बैर मोल ले लिया है अब या तो यह मुहावरा बदलेगा या फिर से एक बार फिर सच सबित होगा, इंतजार करिए 16 मई का…..

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